
लखनऊ के चर्चित बीबीडी ग्रुप की जमीन पर आयकर विभाग ने ऐसी गाज गिराई कि खुद ‘मालिकों’ को भी खबर नहीं थी कि वो ज़मींदार बन चुके हैं।
100 करोड़ रुपये की इन बेनामी संपत्तियों को जब आयकर विभाग ने जब्त किया, तब जाकर क्लर्क रामलाल और गार्ड जगमोहन को पता चला कि उनके नाम पर करोड़ों की जमीन थी।
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दलित कर्मचारियों के नाम पर दर्ज की गईं प्रॉपर्टीज़, वो भी बिना बताए
2005 से 2015 के बीच लखनऊ-अयोध्या हाईवे पर उत्तरधौना, जुग्गौर, सरायशेख जैसे इलाकों में कीमती जमीनें खरीदी गईं। मालिकाना हक तो विराज सागर दास और अलका दास का था, लेकिन दस्तावेजों में नाम था—बीबीडी ग्रुप के पिउन और ड्राइवरों का।
अब इसे आप बेरोजगारी में भव्यता का सपना कहें या “सबका मालिक राम” स्कीम का नया वर्जन!
संपत्तियां खरीदीं भी… और बिक भी गईं, बस कर्मचारी को ही नहीं बताया
आयकर विभाग को शक तब हुआ जब एक सर्किल रेट 20 करोड़ की जमीन की रजिस्ट्री में रामप्रसाद नाम के ऑफिस बॉय का नाम सामने आया।
जांच में पता चला कि नाम पर तो प्रॉपर्टी थी, लेकिन बैंक से पेमेंट आया और अगले दिन कैश में निकाल लिया गया।
यानी, पैसा गया… जमीन भी गई… और रामप्रसाद को चाय बनाने का ऑर्डर मिल गया।
बिक गई ज़मीनें, अब खंगाले जा रहे पुराने सौदे
आयकर विभाग अब उन प्रॉपर्टीज की भी जांच कर रहा है जो बेच दी गईं, ताकि यह साफ हो सके कि उन्हें रिश्तेदारों, ड्राइवरों या चायवाले के नाम पर तो नहीं निपटाया गया। जैसे-जैसे जांच बढ़ रही है, बीबीडी ग्रुप का पुराना इन्फ्रास्ट्रक्चर, नया ड्रामा बनता जा रहा है।
20 करोड़ सर्किल रेट, 100 करोड़ बाजार कीमत… और असली ‘मालिक’ पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आते हैं!
जब्त की गई 8 हेक्टेयर जमीन की कीमत जहां सरकारी दस्तावेजों में 20 करोड़ है, वहीं मार्केट में इसकी वैल्यू 100 करोड़ से ज़्यादा है।
पर अफसोस ये कि जिसके नाम पर रजिस्ट्री थी, वो अभी भी बैंक के बाहर लाइन में खड़ा KYC करवा रहा है।
खरीद-फरोख्त पर रोक, अब न कोई बेचेगा, न कोई खरीदेगा
आयकर विभाग ने सभी उप निबंधक कार्यालयों को अलर्ट कर दिया है कि इन संपत्तियों की रजिस्ट्री फ्रीज़ कर दी जाए। जनता को चेतावनी दी गई है कि वो अपना पीएफ, शादी का खर्च और FD बेचकर इन ‘फर्जी जमीनों’ में इन्वेस्ट ना करें।
बीबीडी ग्रुप का मामला सिर्फ एक बेनामी प्रॉपर्टी केस नहीं, बल्कि बेनामी प्रैक्टिस का ग्रेजुएशन प्रोजेक्ट बन चुका है। सवाल ये नहीं कि जमीन किसके नाम पर थी… सवाल ये है कि रामप्रसाद को कब उसकी ज़मीन पर चाय पीने का हक मिलेगा?
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